पूंजीगत व्यय बढ़ाएं, करों को सरल बनाएं, अधिक पीएलआई योजनाएं लाएं: भारतीय उद्योग जगत ने वित्त मंत्री से कहा
बजट पूर्व परामर्श के दूसरे दिन गुरुवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और उनके सुझावों को सुना, जिसमें पूंजीगत व्यय में वृद्धि, कर व्यवस्था को सरल बनाना और नई उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं शुरू करना शामिल था।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष संजीव पुरी ने सुझाव दिया कि पूंजीगत व्यय को 2023-24 के संशोधित अनुमान से 25 प्रतिशत बढ़ाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘बढ़े हुए पूंजीगत व्यय को सिंचाई, भंडारण, कोल्ड चेन आदि जैसे ग्रामीण बुनियादी ढांचे में लगाने पर विचार किया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा कि केंद्र को 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.5 प्रतिशत तक लाने के मार्ग पर भी चलना चाहिए।
पुरी ने राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह गठित करने की भी मांग की। 2003 में लागू इस अधिनियम का उद्देश्य राजकोषीय और सार्वजनिक निधि प्रबंधन में सुधार करना था।
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के पूर्व अध्यक्ष शुभ्रकांत पांडा ने कहा कि केंद्र को मांग को बढ़ावा देकर, बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर देकर, खाद्य मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए और कदम उठाकर, एमएसएमई को समर्थन देकर और देश में नवाचार तथा अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देकर विकास की गति को समर्थन देना जारी रखना चाहिए।
इसमें वस्तु एवं सेवा कर स्लैब को घटाकर तीन करना, स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) भुगतान के लिए तीन दर संरचना और जहां शुल्क व्युत्क्रमण मौजूद है, वहां सीमा शुल्क दरों को युक्तिसंगत बनाना शामिल था।
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने व्यक्तिगत करदाताओं को “महत्वपूर्ण राहत” प्रदान करने और उनकी प्रयोज्य आय बढ़ाने के लिए मूल आयकर छूट सीमा को 3 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने का सुझाव दिया।
इसमें यह भी कहा गया कि वर्तमान मानक कटौती, जो 2019 से 50,000 रुपये पर अपरिवर्तित बनी हुई है, को मुद्रास्फीति और बढ़ती जीवन लागतों के समायोजन के लिए बढ़ाकर 100,000 रुपये किया जाना चाहिए।
एसोचैम के अध्यक्ष संजय नायर ने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) सरकार का प्रमुख फोकस क्षेत्र होना चाहिए।
उन्होंने कहा, “सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) से संबंधित खराब प्रदर्शन करने वाली योजनाओं की पहचान करने के लिए एक समर्पित कार्य समूह स्थापित करने की सख्त जरूरत है। इस तरह की पहल मौजूदा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का व्यवस्थित रूप से आकलन करेगी, और उन क्षेत्रों की पहचान करेगी जहां एमएसएमई को समर्थन देने में हस्तक्षेप कम पड़ रहा है।”
उन्होंने कहा, “संपूर्ण मूल्यांकन करके और अनुभवजन्य डेटा एकत्र करके, यह समूह नीतियों में लक्षित सुधार या समायोजन की सिफारिश कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सरकारी पहल एमएसएमई के सामने आने वाली उभरती जरूरतों और चुनौतियों के साथ निकटता से संरेखित हों।”
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) ने सुझाव दिया कि कॉरपोरेट टैक्स दरों पर यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए। हालांकि, इसने यह भी कहा कि 30 प्रतिशत आयकर केवल उन लोगों पर लागू होना चाहिए जिनकी कर योग्य आय 40 लाख रुपये से अधिक है।
पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष संजीव अग्रवाल ने कहा, “इससे देश में उपभोग मांग को बढ़ावा मिलेगा।”
बैठक के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने विनिर्माण क्षेत्र पर जोर देने का भी सुझाव दिया ताकि 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक पहुंचाई जा सके।
चैंबर ने यह भी कहा कि चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, औषधीय पौधों और हस्तशिल्प जैसे अधिक श्रम प्रधान क्षेत्रों में भी पीएलआई योजनाएं लाई जानी चाहिए।
पीएलआई के समान, सीआईआई ने खिलौने, कपड़ा और परिधान, पर्यटन, लॉजिस्टिक्स, लघु खुदरा और मीडिया एवं मनोरंजन जैसे श्रम-प्रधान और “उच्च विकास क्षमता” वाले क्षेत्रों के लिए रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना का सुझाव दिया।
बैठक में भाग लेने वाले अन्य निकायों में सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरर्स, बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और सीमेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन शामिल थे।