कोचिंग सेंटर में हुई मौतों के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच सीबीआई को सौंपी, ताकि लोगों को जांच में कोई संदेह न रहे
अदालत ने कहा कि वह इस मामले को सीबीआई को स्थानांतरित कर रही है ताकि जनता को जांच पर संदेह न हो। अदालत ने इस निर्णय के पीछे घटनाओं की गंभीरता और लोक सेवकों की भ्रष्टाचार में संभावित संलिप्तता को कारण बताया।
पीठ ने कहा, “घटना की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि जनता को जांच के संबंध में कोई संदेह न रहे, यह अदालत जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करती है।”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सतर्कता आयोग को मामले की सीबीआई जांच की निगरानी के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को नामित करने का भी निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पुलिस और एमसीडी को फटकार लगाते हुए कहा कि वह यह नहीं समझ पा रही है कि छात्र बाहर क्यों नहीं आ पाए। बेंच ने पूछा कि एमसीडी अधिकारियों ने इलाके में खराब जल निकासी नालों के बारे में कमिश्नर को क्यों नहीं बताया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि एमसीडी अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है और यह एक सामान्य बात हो गई है।
अदालत ने पुलिस पर कटाक्ष करते हुए कहा, “शुक्र है कि आपने बेसमेंट में बारिश का पानी घुसने के लिए चालान नहीं काटा, जिस तरह आपने एसयूवी चालक को वहां कार चलाने के लिए गिरफ्तार किया था।”
‘एमसीडी में कानून का कोई सम्मान नहीं’
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस की भी इस मामले में मिलीभगत हो सकती है। उन्होंने घटना में पुलिस चौकी की संलिप्तता पर भी प्रकाश डाला। एमसीडी के वकील ने कहा कि राऊ कोचिंग सेंटर को छोड़कर सभी के खिलाफ कार्रवाई की गई है, क्योंकि इसे केस प्रॉपर्टी माना जाता है।
अदालत ने एमसीडी आयुक्त से पूछा कि शहर की उम्मीदें उनके कामों पर टिकी हैं। अदालत ने पूछा कि क्या गाद निकालने का काम किया गया है। इसके अलावा, अदालत ने डीसीपी से पूछा कि क्या जांच अधिकारी (आईओ) ने इलाके के मजबूत जल निकासी नालों के नक्शे एकत्र किए हैं।
डीसीपी ने जवाब दिया कि मामले के संबंध में एमसीडी अधिकारियों को नोटिस जारी किया गया है।
अदालत को बताया गया कि जिस इलाके में यह घटना हुई, वहां जल निकासी व्यवस्था लगभग न के बराबर थी, सड़कें अस्थायी नालियों के रूप में काम कर रही थीं। उच्च न्यायालय ने कहा कि निर्दोष को दंडित करना और वास्तविक दोषियों को छोड़ देना घोर अन्याय होगा।
अदालत ने दिल्ली पुलिस को तथ्यों का स्पष्ट ब्यौरा देने का भी निर्देश दिया और कहा कि ऐसा न करना अस्वीकार्य होगा तथा इसे “भाइयों के क्लब” जैसा दृष्टिकोण बताया।
उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक प्राधिकरणों की प्रभावशीलता की कमी के लिए आलोचना करते हुए कहा, “सार्वजनिक प्राधिकरण इन दिनों काम नहीं कर रहे हैं।” न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, यहां तक कि सत्ता में बैठे लोगों को भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से वैज्ञानिक तरीके से जांच करने को भी कहा और उन्हें किसी भी बाहरी दबाव के आगे न झुकने की सलाह दी।